लेखनी कहानी -10-august -2022 Barsaat (Love ♥️ and tragedy ) episode 35
हंशित बेहोश हो चुका था उसके दोस्त उसे अस्पताल ले आये । सब लोग बेहद परेशान थे उसके साप से काटने वाली बात सुन कर।
"ये सब मेरी ही गलती है ना मैं ऐसा विचार अपने मन में लाती और ना मेरे दोस्त की ऐसी हालत होती" श्रुति ने कहा रोते हुए ।
नही श्रुति तू अपने आप को कसूरवार मत ठहरा देखना हंशित जल्दी ठीक हो जाएगा, और इसमें तेरी कोई गलती नही हम सब ने तो उन दोनों को करीब लाने के लिए एक दूसरे से प्यार का इज़हार करने के लिए ये सब किया था और देखना हम लोग इसमें कामयाब भी हो गए आख़िरकार दोनों एक दूसरे से प्यार करते है । अब बस हंशित ठीक हो जाए फिर सब सही हो जाएगा। लव ने कहा
"लेकिन हिमानी, तुम सब ने सुना ना की उसके पिता उसकी शादी कर रहे है उस सुरेन्द्र के साथ आखिर सब कुछ कैसे ठीक होगा " कुश ने कहा
तब ही श्रुति बोली " जिसने उनके दिलों में प्रेम डाला है और उन्हें मिलवाया है एक दूसरे से वही आगे भी कोई ना कोई राह जरूर निकालेंगे तुम ईश्वर पर भरोसा करो देखना वो कोई ना कोई रास्ता अवश्य निकाल देंगे जिससे ये दोनों आपस में मिल सके "
"सही कहा श्रुति अब तो बस ईश्वर का आसरा है और हमारा दोस्त जल्दी ठीक हो जाए ताकि वो अपने प्यार को किसी और का होने से रोक ले और उसके प्यार की जीत हो जाए " लव ने कहा
सब लोग अस्पताल के बाहर ही बैठे थे ।
उधर रुपाली जी का मन घबरा रहा था क्यूंकि हंशित से उनकी बात भी नही हुयी थी । और उसका फ़ोन बंद जा रहा था इसलिए उन्होंने श्रुति को फ़ोन किया।
श्रुति रुपाली जी का फ़ोन आता देख डर गयी , उसे समझ नही आ रहा था की वो क्या कहे उसने फ़ोन उठाया और बात की।
जब उन्होंने हंशित का पूछा तो श्रुति ने झूठ बोलते हुए कहा " आंटी हंशित का फ़ोन ख़राब हो गया है और वो अभी बाहर गया है फोटो खींचने जब आएगा मैं उसकी बात आपसे करा दूँगी ये कह कर उसने फ़ोन रख दिया और उसके बाद बेहद रोती है वो इस तरह उसकी माँ से झूठ बोलने पर।
डॉक्टर ने बताया की मरीज़ की हालत वैसे तो सही है हमने इलाज भी कर दिया है लेकिन अगर उसे 48 घंटे तक होश नही आया तो फिर वो कोमा में भी जा सकता है बस यही एक समस्या है अब बस ईश्वर से यही प्रार्थना है की उसे होश आ जाए और वो इस भरी जवानी में कोमा में ना जाए नही तो उसकी पूरी ज़िन्दगी इसी तरह निकल जाएगी।
ये सुन कर तो उसके दोस्तों के पेरो तले ज़मीन ही निकल गयी , उनके भाई समान दोस्त, उनके दुख को अपना समझने वाला आज इस हालत में पड़ा था जहाँ वो ज़िन्दगी और मौत से लड़ रहा था उसकी हालत देख उनकी आँखों से आंसू रुकने का नाम नही ले रहे थे वो सब अपने आप को ज़िम्मेदार समझ रहे थे उसकी इस हालत का।
सब लोग हाथ जोड़ कर ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे की बस उनका दोस्त बच जाए फिर चाहे उसके बदले में उन्हें कुछ भी करना पड़े ।
श्रुति ने तो अपनी माँ को माफ करने तक का वायदा कर लिया था भगवान से उसके दोस्त की जान बचाने के खातिर , जो उसके लिए बेहद मुश्किल था अपनी माँ को माफ करना लेकिन दोस्त से बढ़ कर कुछ नही था उसके लिए ।
वही दूसरी तरफ हिमानी अपने कमरे में बैठी रो रही थी हंशित के लिए, उसे ये भी नही पता की वो केसा है और किस हाल में है ।
भव्या अंदर आती है , हिमानी उसे गले लगा कर रोते हुए कहती है " देख लिया तूने, बस इसी दिन से डरती थी मैं, आज पिताजी ने पहली बार मुझ पर हाथ उठाया है , मेरी वजह से उनका सर झुक गया उन सब के सामने "
"नही दीदी आपकी कोई गलती नही, आपको अपनी ज़िन्दगी जीने का पूरा हक़ है, दिल पर इंसान की मर्ज़ी नही चलती और आपको अपनी ख्वाहिश जाहिर करने का पूरा हक़ है , आपने जो कुछ करा सही करा मैं आपके साथ हूँ, और मानिये तो भाग जाइये यहाँ से वरना पिताजी आपकी शादी सुरेन्द्र से कर देंगे " भव्या ने कहा
"नही भव्या हर गिज़ नही, माना की मैं हंशित से प्यार करती हूँ शुरू दिन से लेकिन मेरे लिए किसी भी नए रिश्ते की शुरुआत करने के लिए माता पिता की रज़ा मंदी बेहद ज़रूरी है , भले ही हंशित मेरा प्यार है लेकिन मेरे माता पिता मेरे भगवान है और मैं भगवान को निराश करके अपनी नयी ज़िन्दगी शुरू नही कर सकती ।
और ये बात हंशित बखूबी जानता है हमारी प्रेम कहानी का अंत अगर ऐसे ही लिखा है ईश्वर ने तो हमें ऐसे ही मंज़ूर है लेकिन मैं घर से भाग कर अपनी ज़िन्दगी की नयी शुरुआत नही करूंगी चाहे कुछ हो जाए " हिमानी ने कहा
"दीदी आप बेवकूफी कर रही हो, पिताजी कभी नही मानेंगे और माँ उन्हें तो आप जानती हो पिताजी की कही बात उनके लिए पत्थर पर खीची लकीर समान होती है , दीदी बेवकूफी मत करो दो दिन बाद पिताजी आपकी और सुरेन्द्र की शादी करा देंगे ज़िन्दगी भर वो लोग आपको ताने देते रहेंगे , और कविता आंटी वो तो आपको बहु भी नही मानेंगी और सुरेन्द्र भी कभी ना कभी आपको ताना दे ही देगा, दीदी ज़िन्दगी गुज़ारना मुश्किल हो जाएगी उन लोगो के साथ मेरी मानो अपने दिल की आवाज़ सुनो और चली जाओ यहाँ मैं सब कुछ संभाल लूंगी थोड़े दिन बाद सब ठीक हो जाएगा "भव्या ने कहा
"कुछ ठीक नही होगा जो बदनामी मेरी वजह से माँ पिताजी की होगी उसे समय जैसा मरहम भी नही भर सकेगा , जब जब वो मुझे देखेंगे उन्हें अपने चेहरे पर कालिख पुत्ती हुयी नज़र आएगी जो मैं पोत कर जाउंगी इस घर से भाग कर नही ये मुझसे नही होगा " हिमानी ने कहा
. दरवाज़े पर खड़ी वैशाली जी अपनी बेटी की बातें सुन रही थी उनकी आँखों में आंसू थे , वो जान गयी थी की उनकी बेटी उन लोगो की इज़्ज़त के खातिर अपने प्यार तक को कुर्बान कर देगी।
हिमानी ने अपनी माँ को देख लिया और बोली " माँ मेरी कोई गलती नही, मुझे माफ कर दीजिये ना जाने मैं कहा बहक गयी थी "
. वैशाली जी अंदर आयी और उसके सर पर हाथ रख कर बोली " बेटा मैं तेरा साथ नही दे सकती मैं मजबूर हूँ, मुझे माफ करदे मैं चाह कर भी तेरे प्यार को तुझसे नही मिला सकती मैं जानती हूँ तू ये सब कुर्बानिया हमारे खातिर दे रही थी और आगे भी हमारे खातिर ना जाने क्या कुछ कर सकती है "
"माँ मैं नही जानती की ये सब कैसे हो गया, कब मुझे उस शहरी लड़के से प्यार हो गया मुझे नही पता चला आज मेरी वजह से मेरी बेवक़ूफ़यों की वजह से पिताजी की कितनी बदनामी हो गयी मुझे माफ करदो माँ, मैं वैसा ही करूंगी जैसा पिताजी कहेँगे " हिमानी ने कहा रोते हुए अपनी माँ के सीने से लग कर
वैशाली जी की आँखों से आंसू निकल रहे थे वो बोली " बेटा मैं जानती हूँ तू उस लड़के से और वो लड़का तुझसे दोनों एक दूसरे बेहद प्यार करते हो, लेकिन बेटा हमारी बात मान और उसकी मोहब्बत अपने दिल इस दिल से निकाल फेक बेवजह तुझे ही दुख पहुंचेगा तेरे पापा कभी भी उस शहरी लड़के के हाथ में तेरा हाथ नही देंगे। वो नही चाहते जो 20 साल पहले हुआ था वो फिर दोबारा हो, वो इतिहास दोहराना नही चाहते इसलिए बेटा इसे भूल जा इसी में हम सब की भलाई है "
"केसा इतिहास माँ, आखिर क्या हुआ था 20 साल पहले आखिर क्यू पिताजी दीदी और उस शहरी लड़के की मोहब्बत के बीच दीवार बन रहे है क्यू माँ आखिर ऐसा भी क्या हुआ था जो आप सब को इतिहास दोहराता नज़र आ रहा है , बताओ माँ आखिर वो क्या वजह है जिसकी वजह से पिताजी दो प्यार करने वालो की मोहब्बत को इस तरह कुर्बान कर रहे है " भव्या ने पूछा
"हाँ माँ बताओ मुझे क्या हुआ था ऐसा " हिमानी ने भी पूछा
मैं बताता हूँ की ऐसा किया हुआ था , आखिर क्यू मैं तुम दोनों के बीच दीवार बन कर खड़ा हूँ, आखिर क्यू मुझे मोहब्बत नाम से नफरत है क्यूंकि ये दर्द के सिवा कुछ नही देती है , मोहब्बत तो दर्द का दूसरा नाम ही है , तुम दोनों को जानना है ना आखिर क्यू मैं उस शहरी लड़के की मोहब्बत पर भरोसा नही कर रहा तो सुनो।
20 साल पहले जब तुम्हारी माँ हमारे घर शादी हो कर आयी थी । उस समय मेरी एक छोटी बहन थी जो हम सब की बेहद लाडली थी , उसे कुछ हो जाता तो हम सब परेशान हो जाते, वो हम भाइयो की एकलौती बहन थी हमारा मान, सम्मान थी वो।
वो भी पूरे केदारनाथ के चप्पे चप्पे से वाकिफ थी उसे हम सब झल्ली कहते थे वो थी ही ऐसी रोते हुए को भी हँसा दे।
वो भी जब सेलानी आते तो उन्हें देख बेहद खुश होती, भोले नाथ की बहुत बड़ी भक्त थी हर समय उन्ही का नाम जप्ती थी । उसका आगमन हमारे घर में ख़ुशी लाता था । फिर एक दिन एक शहरी बाबू यहाँ आये उससे मिले।
उसकी खूबसूरती पर मोहित हो गए और वो भी उन्हें पसंद करने लगी थी । दोनों के बीच प्यार हो गया था दोनों चोरी चोरी मिलते थे उसने मुझे सब कुछ बताया था, वो मुझे भाई नही दोस्त मानती थी मैं उस लड़के से मिला उससे बात चीत करी।
माँ पिताजी को बताया उसके बारे में सबने मना कर दिया क्यूंकि वो जानते थे ये शहरी लोग ऐसे ही होते है हमारी मासूम लड़कियों को प्यार के जाल में फसा कर उनसे शादी तो कर लेते है लेकिन अपने साथ नही ले जाते है ।
मैं इस बात पर राज़ी नही हुआ, मुझे उन दोनों की आँखों में प्यार साफ नज़र आता था इसलिए मैने उन दोनों को मिलवाने के लिए चोरी छिपकर मंदिर ले जाकर उनकी शादी करा दी वो शायद मेरी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी भूल थी , मैं उस आदमी के प्यार के पीछे छिपी साजिश को भाप ना पाया उसका मकसद सिर्फ और सिर्फ मेरी बहन को हासिल करना था जो उसने उसे प्रेम जाल में फसा कर कर लिया।
और अगली ही सुबह उसे सोता छोड़ कर चला गया । उस दिन के बाद से मेरी बहन उसके प्यार और प्यार में किए गए धोखे को बर्दाश ना कर सकी और पागल सी हो गयी दिन भर यही कहती " वो आएगा एक दिन आएगा , मुझे लेकर जाएगा "
लेकिन वो ज़ालिम इंसान आज तक नही आया और तुम्हारी बुआ एक दिन गाड़ी के नीचे आकर मर गयी उस दिन मेरी बहन, हमारे घर की खुशियों का चिराग बुझ गया , मुझे भी घर से निकाल दिया गया तुम्हारी माँ के साथ क्यूंकि सारा कसूर मेरा ही तो था अगर मैं उन दोनों को नही मिलाता उनकी शादी नही कराता , उस आदमी का असली चेहरा पहचान जाता तो शायद ये सब नही होता और आज मेरी बहन मेरे पास होती मेरे हाथ पर राखी बांधती ।
बस यही वजह है जो की मैं तेरी शादी उस शहरी लड़के से कराना नही चाहता बहन का दुख तो मैने बर्दाश कर लिया लेकिन औलाद का दुख बर्दाश करने की हिम्मत नही है इस बूढ़े आदमी में। हरी किशन जी ने कहा
"लेकिन पिताजी हर शहरी लड़का वैसा नही होता है मैने खुद उसकी आँखों में दीदी के लिए सच्चा प्यार देखा है " भव्या ने कहा
"भव्या चोर के माथे पर लिखा नही होता है की वो चोर है ये तो जब पता चलता है जब वो पूरा घर साफ कर जाता है और ये मोहब्बत ये प्यार जैसी चीज कुछ नही होती है , उस शहरी लड़के की आँखों में भी मुझे अपनी बहन के लिए प्यार नज़र आता था देखो उसने क्या किया तुम्हारी बुआ के साथ मेरी छोटी सी लाडली बहन को शादी की अगली सुबह ही छोड़ कर भाग गया मैं नही चाहता मेरी बेटी के साथ भी वही सब हो " हरी किशन जी और कुछ कहते तब ही भव्या दोबारा बोल पड़ी ।
पिताजी एक बार उससे मिल लीजिये, हर प्यार करने वाला इंसान गलत नही होता है , पिताजी एक बार ठन्डे दिमाग़ से सोच लीजिये, क्या आपका दीदी की शादी सुरेन्द्र से करना ठीक रहेगी, जबकी हम सब जानते है की सुरेंद्र और उसके घर वाले दीदी को खुश नही रख सकेंगे भव्या और कुछ कहती तब ही हिमानी बोल पड़ी
बस भव्या बहुत हुआ, बहुत बोल ली तू जैसा पिता जी कह रहे है वही ठीक है , मैं सुरेन्द्र से शादी करने को तैयार हूँ लेकिन मेरी एक शर्त है की आप उनको अपनों जमा पूँजी में से कुछ नही देंगे दहेज़ के नाम पर मैं नही चाहती की मेरे जाने के बाद आप कर्जा चुकाते रहे ज़िन्दगी भर ।
"जैसी आपकी मर्ज़ी दीदी, आपको ये सब लोग आग में धकेल रहे है और आप ख़ुशी ख़ुशी अपने प्यार की क़ुरबानी देकर उस आग में कूद ने जा रही हो लेकिन याद रखना सिर्फ आप ही इस आग में नही जलोगी आपके साथ साथ एक बेगुनाह भी इस प्यार की आग में जलता रहेगा जिसका गुनाह सिर्फ इतना है की उसने आपको सच्चा और पाकीजा प्रेम किया और आपने उसके प्रेम की आहुति दे दी सिर्फ और सिर्फ किसी कि बातों में आकर जरूरी तो नही हर इंसान एक जैसा हो दीदी अब भी समय है अपने दिल कि आवाज़ सुनो नही तो बाद में पछताना पड़ेगा " भव्या ने कहा और वहा से नाराज़ हो कर चली गयी ।
"पिताजी मैं बहुत शर्मिंदा हूँ जैसा आप कहेँगे मैं वैसा ही करूंगी मुझे आप पर पूरा भरोसा है " हिमानी ने कहा
वैशाली जी हिमानी को देख रही थी उन्होंने एक नज़र अपने पति पर डाली जो कि बेहद सख्त बने हुए थे और वो बिना कुछ कहे वहा से चले गए ।
वैशाली जी भी उनके पीछे गयी उन्हें समझाने के लिए कि वो ऐसा ना करे लेकिन उन्हें समझ नही आया और बोले " जाकर बाजार से कुछ समान ले आओ मौसम ख़राब है दो दिन बाद बेटी कि शादी है , "
वैशाली जी बहुत ही बुरे धर्म संकट में थी वो ना चाहते हुए भी अपने पति के दिए गए आदेश को मानने पर मजबूर थी ।
हिमानी अंदर रो रही थी और भव्या बाहर गुस्से में अपने आंसू साफ कर रही थी और ना जाने मन ही मन क्या कुछ कह रही थी तब ही श्रुति का फ़ोन आता है उसके पास।
वो हंशित के बारे में उसे बताती है जो कुछ भी डॉक्टर ने बताया था । ये सुन वो बेहद दुखी होती है ।
और हिमानी को जाकर सब कुछ बता देती है लेकिन हिमानी ना चाहते हुए भी सिवाय उसकी सालमती कि दुआ के कुछ नही कर सकती थी शायद उनकी किस्मत में भगवान ने मिल कर बिछड़ना ही लिखा था । एक तरफ हिमानी का दुल्हन बन कर सुरेन्द्र के घर जाना वही दूसरी तरफ हंशित जो कि ज़िन्दगी और मौत के बीच फसा है और जिसके लिए वो 48 घंटे है जिसमे उसकी ज़िन्दगी का फैसला होना है । एक तरफ उसकी ज़िन्दगी उसका प्यार किसी और के लिए दुल्हन बन रही होगी वही दूसरी और उसकी सासो कि डोर भगवान के हाथो होगी।
आखिर क्या होगा क्या हंशित अपने प्यार को किसी और का होने से बचा पायेगा, या फिर उसकी ज़िन्दगी उसका प्यार हमेशा हमेशा के लिए किसी और का हो जाएगा जानने के लिए पढ़िए अगले एपिसोड में
Aniya Rahman
10-Aug-2022 10:01 PM
Nice
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Muskan khan
10-Aug-2022 09:47 PM
Very nice
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Khan
10-Aug-2022 09:45 PM
Nice
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